कबीर पंथ की स्थापना
कबीर पंथ की स्थापना विक्रमी संवत् 1460 (सन् 1403) को हुई जब परमेश्वर कबीर जी पांच वर्ष की लीलामय आयु में थे और 104 वर्ष के वृद्ध पंडित रामानन्द जी को शरण में लेकर सत्यलोक दर्शन कराए थे। उसके पश्चात् स्वामी रामानन्द जी ने परमेश्वर कबीर जी को नामदान करने की औपचारिकता कर दी थी। विस्तृत जानकारी:-
परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी का धरती पर अवतरण सन् 1398 विक्रमी संवत् 1455 ज्येष्ठ मास पूर्णमासी (शुद्धि) को काशी शहर के बाहर ‘‘लहर तारा‘‘ नामक सरोवर में कमल के फूल पर शिशु रूप में हुआ। आकाश से एक प्रकाश का गोला-सा आया और ‘‘लहर तारा‘‘ सरोवर के एक कोने में समाप्त हो गया। इस के प्रत्यक्ष दृष्टा स्वामी अष्टानन्द शिष्य स्वामी रामानन्द जी थे। वे प्रतिदिन सुबह वहाँ स्नान करके अपने गुरू स्वामी रामानन्द जी के मार्ग दर्शनानुसार साधना किया करते थे। यह दृश्य देखकर स्वामी अष्टानन्द जी को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि जब अष्टानन्द जी ने उस प्रकाश पुंज्ज को देखा तो उसकी चर्म दृष्टि उस तेज को सहन न कर सकी। आँखें बन्द हो गई। उस समय उनको एक शिशु का रूप दिखाई दिया जैसे हम कभी सूर्य की ओर देखते हैं तो हमारी आँखें सूर्य के प्रकाश को सहन नहीं कर पाती। आँखें बन्द करते हैं या सूर्य से दूसरी ओर करते हैं तो हमें सूर्य का प्रकाश रहित आकार दिखाई देता है।
सी प्रकार अष्टानन्द जी को उस प्रकाश पंुज्ज में शिशु रूप दिखाई दिया था। इसका वास्तविक रहस्य जानने के लिए स्वामी अष्टानन्द जी उसी समय उठ कर स्वामी रामानन्द जी के पास चले गये।
काशी शहर में एक नीरू (नूर अली) नामक जुलाहा रहता था। उसकी पत्नी का नाम नीमा (नीयामत) था। वे निःसंतान थे। वे इसी जन्म में हिन्दू ब्राह्मण थे। उनको बलपूर्वक मुसलमानों ने धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बना दिया था। उनका गंगा में स्नान करना भी मना कर दिया था। वर्षा के मौसम में गंगा दरिया का स्वच्छ जल लहरों द्वारा उछल कर गऊ घाटों में से बाहर आकर तारा नाम नीचे स्थान में भर जाता था जो एक सरोवर का रूप ले लेता था। पूरे वर्ष वह जल स्वच्छ रहता था। इस कारण से उस तालाब को ‘‘लहर तारा‘‘ नाम से जाना जाने लगा। नीरू जिनका पूरा नाम नूर अली रखा गया था परन्तु वे नीरू नाम से ही अधिक जाने जाते थे तथा उनकी पत्नी ‘‘नीमा‘‘ जिनका पूरा नाम नीयामत रखा गया था परन्तु ‘‘नीमा‘‘ नाम से अधिक प्रसिद्ध हुई।
वे दोनों पति-पत्नी भी उस लहर तारा सरोवर में प्रतिदिन ब्रह्म महूर्त में स्नान करने के लिए जाते थे। (ब्रह्म महूर्त सूर्य उदय से लगभग 1) घण्टा पूर्व के समय को कहा जाता है)
उन्होंने उस सरोवर में कमल के फूल पर एक शिशु को देखा और तुरन्त उठाकर अपने घर ले गये। जुलाहे के घर पर पलने की लीला करने व बड़े होकर जुलाहे का कार्य करके लीला करने के कारण परमेश्वर कबीर जी जुलाहा (धाणक) कहलाऐ।
कबीर पंथ का पतन
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया था कि हे धर्मदास! मेरे सत्य लोक जाने के पश्चात् काल मेरे (कबीर) नाम से 12 पंथ चलाएगा जो इस प्रकार होंगे:-
1 प्रथम चुड़ामणि नाम साहेब का पंथ (दामाखेड़ा वालों का पंथ)
2 जागु दास का पंथ
3 सूरत गोपाल का पंथ
4 मूल निरंजन का पंथ
5 टकसारी पंथ
6 भगवान दास का पंथ
7 सत्यनामी पंथ
8 कमाल का पंथ
9 राम कबीर पंथ
10 परम धाम की वाणी पंथ
11 जीवा का पंथ
12 गरीब दास का पंथ।
कबीर पंथ का उत्थान
कबीर पंथ का उत्थान सन् 1997 (कलयुग 5505 वर्ष बीत जाने पर) में सन्त रामपाल दास जी महाराज द्वारा प्रारम्भ हुआ है।
उपरोक्त सर्व वार्ता सुनकर धर्मदास जी ने प्रश्न किया हे परमात्मा! मेरे वंशावली का तथा सर्व संसार का उद्धार कैसे होगा और किस समय आप अपना नाद पुत्रा अर्थात् अपना वंश भेजोगे।
तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा धर्मदास! जब मैं प्रथम सतयुग में आया तब काल ने कहा था कि तीन युगों में जीव थोड़े पार करना। मैंने काल से कहा था:- चैथा युग जब कलयुग आएगा। तब मैं अपना अंश (नाद वाला) भेजूंगा। उस समय भक्ति सर्व मंत्रों की (प्रथम मन्त्रा, सत्य नाम तथा सारनाम)दीक्षा तीन बार में दी जाएगी। उस समय सर्व संसार मेरी भक्ति करेगा। हे धर्मदास! यदि उस समय तेरे वंश वाले मेरे उस नाद वाले अंश से दीक्षा प्राप्त करेंगे तो वे भी मोक्ष प्राप्त करेंगे। मैं जो आज तेरे से बचन कह रहा हूँ और आप ‘‘स्वसमबेद बोध‘‘ नामक अध्याय में ‘‘कबीर सागर‘‘ में लिख रहे हो, यह बचन उस समय सत्य होगा जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा। तब तक तो यह ‘‘स्वसमबेद बोध‘‘ वाली मेरी वाणी निराधार लगेगी। तब परमेश्वर कबीर जी ने ये शब्द कहे थे।