Hans Muni | Ganga Das - Kaal Doot

12वां पंथ भेद - हंस मुनी काल दुत की सही जानकारी

कबीर साहेब जी के ग्रन्थ 1 कबीर सागर जी में दो स्थानों पर बारह पंथों का वर्णन मिलता है। दोनों में असमानता है। 

12 पंथों का विवरण

एक अनुराग सागर में मिलता है तथा दूसरा विवरण कबीर वाणी में मिलता है। अनुराग सागर की वाणी कहती है 12वां पंथ काल का होगा कबीर वाणी कहती है 12वें पंथ में मेरी वाणी प्रकट होगी। कबीर साहेब ने धर्मदास जी को बताया जो वाणी तुम लिख रहे हो, इन वाणियों में काल अपने दूत भेज कर मिलावट करवा देगा। मेरी वाणी को दोबारा प्रकट करने के लिये एक संत प्रकट होगा | वह मेरे ज्ञान को सही-सही प्रकट करेगा | उसके नाम से एक पंथ चलेगा जो 12वां पंथ कहलायेगा! कालदूत कभी भी सत्य ज्ञान प्रकट नहीं करेगा। 12वां पंथ गरीब दास जी ने प्रकट किया है। गरीबदास जी का ज्ञान कबीर साहेब के ज्ञान से सही मेल खाता है। अतः अनुराग सागर की वाणी 12वें पंथ के लिये जो लिखी है, वह संत रामपाल जी महाराज व गरीबदास जी के लिए नहीं है, ये किसी और के लिए है वो आपको आगे बतायेंगे |

 पहले कबीर सागर के बारे में कुछ बताते हैं, कबीर साहिब ने अलग-अलग विषयों पर सत्संग किए जैसे; हनुमान बोध, अनुराग सागर, ज्ञान प्रकाश, मुक्तिबोध, कबीर वाणी, आत्मबोध आदि; इन को जोड़कर एक ग्रंथ बनाया गया, जिसको कबीर सागर कहते हैं |

बारहवें पथ होवे उजियारा। तेरहवें पंथ मिटै सकल अन्धियारा।।

सम्वत 1775 होई। ता दिन प्रेम प्रकटे सोई।।

बारहवें पंथ प्रकट होवे बानी, शब्द हमारे की निर्णय ठानी।।

ये बारह पंथ हमि को ध्यावै। अस्थिर घर का मर्म न पावै।।

बारहवें पंथ में हम हि चल आवे। सब पंथ मिटा एक ही पंथ चलावे।।

इन वाणियों में कबीर साहेब समझा रहे हैं सम्वत 1775 में एक सन्त प्रकट होगा जिसके नाम से 12वां पंथ चलेगा। ये सन्त मेरी यथार्थ वाणी को प्रकट करेगा परन्तु उसके अनुयाई पार नहीं होंगे अथार्थ उसके अनुयायियों का मोक्ष नहीं होगा।

भावार्थ है 12 वां पंथ गरीब दास जी के नाम से चला हुआ है। गरीब दास जी को कबीर साहेब ने सम्वत् 1785 में गांव छुड़ानी जि. झज्जर में दर्शन देकर सतलोक लेकर गये फिर दर्शन के बाद गरीब दास जी ने 24 हजार वाणियों का अनमोल उच्चारण किया जो वर्तमान में सद्ग्रन्थ नाम से मौजूद है। इस ग्रन्थ में जो भक्ति विधि लिखी है वह कबीर साहेब के ज्ञान से मेल खाती है। अतः गरीब दास जी को कालदूत हंसमुनि नहीं कहा जा सकता क्योंकि काल दूत की भक्ति विधि कबीर साहेब से अलग व गलत होगी कबीर साहेब व गरीब दास जी की नाम देने व जपने की विधि एक जैसी है प्रथम मंत्र जिसको पान परवाना कहते हैं |  द्वितीय मन्त्र दो अक्षर (ओम सोह) सारनाम व सार शब्द है, यही विधि सतगुरु रामपाल जी महाराज जी अपना रहे है। अतः हंस मुनि की वाणी न संत गरीबदास जी व न सतगुरु रामपाल जी महाराज जी पर खरी उतरती है।

अब वो वाणी देखते हैं जो अनुराग सागर में लिखी है वाणी:

अब कहु द्वादश पंथ प्रकाशा। दूत हंस मुनि करे तमाशा।।

वचन बंस घर सेवक होई। प्रथम करे सेवा बहु तोई।।

पाछे अपनो मत प्रगटावे। बहुतक जीव फंद फंदावे।।

अंश बंस का करे विरोधा। कछु अमान कछु मान प्रबोधा।।

यहि विधि यम बाजी लावे। बारह पंथ निज अंश प्रगटावे।।

फिरि फिरि आवे फिरि फिरि जाई। बार बार जगमें प्रगटाई।।

जहां जहां प्रगटे यमदूता। जीवन से कह ज्ञान बहूता।।

नाम कबीर धरावे आपा। कथित ज्ञान काया तहँ थापा।।

जब जब जनम धरे संसारा। प्रगट होयके पन्थ पसारा।।

करामात जीवन बतलावे। जिव भरमाय नरक महँ नावे।।

ये वाणी कहती है :

वाणी वचन वंस घर सेवक होई। प्रथम करे सेवा बहुतोई।।

हंसमुनि दूत वचन परम्परा वाले गुरु से नाम दिक्षा लेकर गुरुघर (आश्रम) में रह कर बहुत सेवा करेगा। गरीब दास जी को सीधे कबीर परमेश्वर मिले थे। कबीर जी का न कोई घर था न आश्रम न ही कबीर साहेब की सेवा की। ये वाणी गरीबदास जी 12वें पंथ वाले पर लागू नहीं होती। रही बात संत रामपाल जी की सत्गुरु जी कभी भी अपने गुरु के आश्रम में नहीं रहे न ही गुरु घर में रहकर सेवा की और न ही 12वें पंथ के संस्थापक हैं। वाणी 12वें पंथ के लिये बोली है।

वाणी:

पाछे अपनो मत प्रकटावे। बहुतक जीव फंद फँसावें।।

वाणी कहती है वह दूत अपना मत (व्यक्तिगत विचार) यानि मनमुखी ज्ञान प्रकट करके बहुत जीवों को अपने फंदे में फंसायेगा। सतगुरु गरीबदास जी ने अपने विचार नहीं दिये जो ज्ञान कबीर साहेब ने दिया उसी ज्ञान को सही सही प्रकट किया है। उसी ज्ञान को सतगुरु रामपाल जी जैसे का तैसा बता रहे हैं। अपनी तरफ से कोई नया मत प्रकट नहीं कर रहे हैं। अतः ये वाणी दोनों सत्गुरु गरीबदास जी व सतगुरु रामपाल जी पर खरी नहीं उतरती है।

वाणी कहती है हंस मुनि दूत अपना मत (विचार) प्रकट करके जीवों को फंसायेगा। वाणी पंथ प्रकट के लिये नहीं कह रही है। गरीब दास जी के (नाम से पंथ चला है व रामपाल जी के नाम से पंथ चल रहा है।)

वाणी अंश बंस का करे विरोधा। कुछ अमान, कछु मान प्रबोधा ।।

वाणी कहती है हंसमुनि दूत, अंश-वंश का विरोध करेगा। कबीर साहेब धर्मदास जी को बता रहे है हंस मुनि दूत केवल अंश-वंश का विरोध करेगा। कुछ मेरे ज्ञान को मानेगा, कुछ नहीं मानेगा।  संत गरीबदास जी व सतगुरु रामपाल जी ने सच्चे ज्ञान को सत बताया है। झूठे ज्ञान को झूठा बताया है किसी वंश व अंश का विरोध नहीं किया। जैसे कबीर साहेब ने 600 वर्ष पहले सभी धर्मगुरुओं को लताड़ा था। तुम्हारा ज्ञान झूठा है। सत ज्ञान बताना विरोध नहीं होता है संत गरीब दास जी ने व संत रामपाल जी ने कबीर साहेब के ज्ञान को पूरा-पूरा माना है, जबकि कालदूत आधे ज्ञान को मानेगा, आधे ज्ञान को नहीं मानेगा। ये वाणी भी संत रामपाल जी व संत गरीबदास जी के लिये सही नहीं है |

वाणी:

नाम कबीर धराये आपा। कथित ज्ञान काया तह थापा।।

न तो सतगुरु गरीबदास जी व सतगुरु रामपाल जी ने अपने आप को कबीर परमेश्वर कहा और न ही काया (शरीर) को भगवान बताया। काल दूत झूठा अनुवाद करके सतमार्ग को भ्रमित करने पर लगे हैं।

वाणी:

करामात जीवन बतलावे।

करामात उसको कहते हैं जो आदमी जादूगरी दिखाये सच्चे नाम को पूरे गुरु से लेकर जाप करने से अपने आप परचे होते हैं। जैसे बीमारी ठीक होना सांसारिक समस्या दूर होना मानसिक शांति मिलना, परमात्मा का साक्षात्कार होना, नकली नाम व कालदूत गुरु से कोई भी परचे नहीं हो सकते। कालदूत केवल करामात जादूगरी ही दिखा सकता है। कबीर साहेब वाणी में कहते है:-

धर्मदास यहां घणा अन्धेरा। बिन परचै जीव जम का चेरा।।

सतगुरु रामपाल जी महाराज जी अपने सत्संग में बताते हैं वह सन्त नहीं होता जो चमत्कार दिखाये और जिस संत के द्वारा दिये नाम से चमत्कार नहीं होते है, वह भी संत नहीं होता। इसलिये कबीर साहेब जो धर्मदास जी को बता रहे हैं बिना परचे (चमत्कार) के जीव काल का चेला बना रहेगा। भावार्थ है सत्य भक्ति से स्वयं चमत्कार होते हैं। कालदूतों को करामात व परचै (के अंतर) का भी ज्ञान नहीं है। जो वाणी कबीर बानी नाम अध्याय में लिखी है वह गरीब दास जी पर खरी उतरती है। गरीबदास जी को परमात्मा कबीर जी मिले, गरीबदास जी ने सतग्रन्थ की रचना की जो प्रमाण के रुप में मौजूद है। सारा गांव (छुड़ानी) गवाह है। गरीब दास जी को कबीर परमेश्वर ने दर्शन दिया था।

अब जानो हंस मुनि कौन है?

अनुराग सागर वाली वाणी गंगादास जी पर खरी उतरती है | सतगुरु रामपाल जी के गुरुदेव स्वामी रामदेवानंद जी महाराज के हजारों शिष्य थे, जिनमें एक गंगादास नाम का संत भी है, जिसने अपना पंथ अलग चला रखा है | इनका आश्रम जिला सोनीपत, हरियाणा के गांव बड़ोता में है | गंगा दास जी मूल रूप से पंजाब के रहने वाले हैं | इन्होंने स्वामी रामदेवानंद जी से दीक्षा लेकर स्वामी जी के आश्रम (तलवंडी भाई, पंजाब) में रहकर स्वामी रामदेवानंद जी की सेवा करने लगे | वह आश्रम की सेवा भी करते थे | कुछ सालों के बाद स्वामी जी से झगड़ा करके आश्रम छोड़कर चले गए | उसके बाद छुड़ानी धाम (सतगुरु गरीबदास जी के आश्रम) में रहकर सेवा की | गंगा दास जी का वहां पर भी झगड़ा हो गया | यह छुड़ानी धाम को छोड़कर चले गए | हरिद्वार जाकर रहने लगे | 

गंगा दास जी ने अखंडानन्द नाम के हठयोगी साधु से दीक्षा लेकर ओम नाम का जाप व हठ योग द्वारा समाधि लगाने लगे | कुछ सालों के बाद वह हठयोग वाली साधना के साथ-साथ गरीबदास जी के सदग्रंथ की वाणी का पाठ भी करने लगे | गंगा दास जी हठयोग भी करवाते हैं, थोड़ा सा ज्ञान गरीबदास जी वाला भी बताते हैं और बहुत सारे शिष्य बना लिए हैं | इनके शिष्य कहते हैं यह बड़े-बड़े चमत्कार (करामात) दिखाते हैं |

कबीर साहेब जी ने हंस मुनि की जो पहचान बताई है, वह इस प्रकार है:-

१. हंस मुनी वचन वंश से उपदेश लेकर वही गुरु घर में रहकर सेवा करेगा | {गंगा दास जी ने वही किया है}

२. बाद में अपनी विचारधारा का मत अलग से चलाएगा | {गंगा दास जी ने अपना अलग मत चला रखा है}

३. वंश का विरोध करेगा {गंगा दास जी ने स्वामी जी और छुड़ाने वालो का खूब विरोध किया है}

4. कुछ अमान कुछ मान बोधा, वाणी कहती हैं; हंसमुनि अपनी परंपरा वालों के कुछ ज्ञान को मानेगा, कुछ को नहीं मानेगा | {यही गंगा दास जी करते हैं, सदग्रंथ की वाणी का पाठ करवाते हैं, भक्ति साधना अखंडानन्द जी की बताई हुई हठयोग करते व करवाते हैं}

5. गंगा दास जी के चेले कहते हैं, यह बड़े-बड़े करामात दिखाते हैं |

नोट: भक्ति मार्ग में झूठ बोलने वाले को महा पाप लगता है | मैं भगवान को साक्षी मानकर कहता हूं, जो लिखा है यह अपनी आंखों से देख कर व कानों से सुनकर लिखा है...

Last update: March 17th, 2020