शंकाः- अनुराग सागर पृष्ठ नं. 120 से 123 तक बारह दूतों का वर्ण न किया है। जिसमं लिखा है कि आठवां दूत जो पंथ चलाएगा वह कुछ कुरान तथा कुछ वेद चुरा कर कुछ कबीर जी का केवल निर्गुण ज्ञान लेकर अपना ज्ञान प्रचार करेगा तथा एक तारतम्य पुस्तक लिखेगा। आप भी वेद व कुरान आदि का वर्णन करके पुस्तक लिख रहे हो। आपका मार्ग कबीर मार्ग ही है क्या प्रमाण है?
समाधानः- यहाँ पर बारह काल पंथों का विवरण है जो दामा खेड़ा वालों के द्वारा मिलावट करके लिखा गया है।
(1) क्योंकि कबीर बानी (बोध सागर) पृष्ठ नं. 134 से 138 तथा कबीर चरित्र बोध पृष्ठ नं. 1870 पर लिखे बारह पंथों के विवरण से नहीं मिलती।
(2) यह विवरण आठवें पंथ के प्रवर्त क का है। उसके बाद राम कबीर पंथ, सतनामी पंथ आदि सर्व बारह पंथ चल चुके हैं।
अब इस दास (रामपाल दास) द्वारा तेरहवां अर्थात् एक वास्तविक मार्ग चलाया जा रहा है। जिससे सर्व पंथ मिट कर एक पंथ ही रह जाएगा। जिसका प्रमाण आप पूर्व लिखे विवरण में पढ़ चुके हैं। जो स्वयं कबीर परमेश्वर जी की आज्ञा व कृपा से चल रहा है। यह दास (रामपाल दास) वेदों तथा कुरान व कबीर वाणी आदि को चुरा कर पुस्तक नहीं लिख रहा है अपितु परमेश्वर कबीर साहेब जी की वाणी के आधार से प्रचार किया जा रहा है तथा परमेश्वर की कर्विवाणी (कबीर वाणी) की सत्यता के लिए वेदों तथा कुरान आदि का समर्थन लिया जा रहा है। वाणी चुराने का अर्थ होता है कि वास्तविक ज्ञान को छुपाने के लिए सतग्रन्थों के ज्ञान को मरोड़-तरोड़ कर अपने लोकवेद (दंत कथा) को उजागर करना परन्तु यह दास तो परमेश्वर कबीर जी की वाणी को ही आधार मान कर यथार्थ ज्ञान के आधार से मार्ग दर्शन कर रहा है।
इसलिए हमारा मार्ग कबीर मार्ग (पंथ) है। शेष पंथों की साधना शास्त्र विरूद्ध अर्थात् मनमाना आचरण (पूजा) है जो मोक्षदायक नहीं है।
कबीर सागर- ‘‘अमर मूल’’ पृष्ठ 196 पर साखी लिखी है:
साखीः- नाम भेद जो जान ही, सोई वंश हमार। नातर दुनियाँ बहुत ही, बूड़ मुआ संसार।।
पृष्ठ 205 पर लिखा हैः-
नाम जाने सो वंश तुम्हारा, बिना नाम बुड़ा संसारा।
पृष्ठ 207 पर लिखा हैः-
सोई वंश सत शब्द समाना, शब्द हि हेत कथा निज ज्ञाना।
पृष्ठ 217 पर लिखा हैः-
बिना नाम मिटे नहीं संशा, नाम जाने सो हमारे वंशा। नाम जाने सो वंश कहावै, नाम बिना मुक्ति न पावै। नाम जाने सो वंश हमारा, बिना नाम बुड़ा संसारा।
पृष्ठ 244 पर लिखा हैः-
बिन्द के बालक रहें उरझाई, मान गुमान और प्रभुताई।
साखीः- हमरे बालक नाम के, और सकल सब झूठ। सत्य शब्द कह जानही, काल गह नहीं खूंठ।।
वंश हमारा शब्द निज जाना, बिना नाम नहिं वंशहि माना।।
धर्मदास निर्मोहि हिय गहेहू। वंश की चिन्ता छाड़ तुम देहू।
कबीर सागर के अध्याय अनुराग सागर पृष्ठ 138 से 141 तक का भावार्थ है किः- तेरे वंश में बिन्द (सन्तान) तो अभिमानी होंगें तथा साथ ही अहंकार वश झगड़ा करेगें तथा कहेगें कि हम तो धर्मदास क वंश (सन्तान) से हैं। हम श्रेष्ठ है। कबीर परमेश्वर ने कहा है कि मेरा वास्तविक वंश वही है जो मेरे निज शब्द अर्थात् सारशब्द से परिचित है जो सारशब्द से परिचित नहीं है वह हमारा वंश नही माना जाएगा। इसलिए बारहवें पंथ अर्थात् गरीबदास जी वाले पंथ तक काल के पंथ ही कहा गया है।
इसलिए धर्मदास जी से कबीर जी ने कहा है कि आप अपने वंश की चिन्ता छोड़ कर निर्मोही हो जाओ।
कबीर साहेब ने कहा कि यदि तेरे वंश वाले मेरे वचन अनुसार चलेगें तो उन्हे भी पार कर दूंगा अन्यथा नहीं।
पृष्ठ नं. 139 से:-
वचन गहे सो वंश हमारा, बिना वचन (नाम) नहीं उतरे पारा।
धर्मदास तब बंस तुम्हारा, वचन बंस रोके बटपारा।।
शब्द की चास नाद कह होई, बिन्द तुम्हारा जाय बिगोई।
बिन्द ते होय ना पंथ उजागर। परखि के देखहु धर्मनिनागर।।
चारहु युग देखहु समवादा, पन्थ उजागर किन्हों नादा।
और वंस जो नाद सम्हारै, आप तरें और जीवहीं तारे।
कहां नाद और बिन्द रै भाई। नाम भक्ति बिनु लोक ना जाई।।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी से कहा जो मेरी आज्ञा का पालन करेगा। वही हमारा वंश अर्थात् अनुयाई होगा अन्यथा वह पार नहीं होगा तेरे बिन्द वाले अर्थात् शरीर से उत्पन्न सन्तान महंत परम्परा तो अभिमानी हो जाऐगें। वे तो सीधे नरक के भागी होगें। केवल नाद (शिष्य परम्परा) से ही तेरा पंथ चल सकेगा यदि वास्तविक नाम चलता रहेगा तो अन्यथा तेरे दोनों ही नाद (शिष्य) बिन्द (शरीर की संतान) भक्तिहीन हो जाएगें। केवल तेरा वंश फिर भी चलेगा।
धर्मदास आप की दोनों परम्परा (नाद व बिन्द) से अन्य कोई मेरे वचन अर्थात् नाद (शिष्य परम्परा) के अनुयायी होंगे उनसे मेरा यथार्थ कबीर पंथ उजागर (प्रसिद्ध) होगा। कबीर साहेब कह रहे हैं कि धर्म दास किसी युग में देख ले केवल नाद (वचन) अर्थात् शिष्य परम्परा से ही जीव कल्याण हुआ है तथा बिन्द (शरीर) की सन्तान अर्थात् महंत परम्परा से कोई सत्य मार्ग नहीं चलता, वे तो अभिमानी होते हैं।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि दामाखेड़ा वाली गद्दी वाले महंत जी मनघड़ंत कहानी बना कर श्रद्धालुओं को गुमराह कर रहे हैं। जो वास्तविक सतनाम (जो दो मंत्र का है जिससे एक ॐ तथा दूसरा सांकेतिक तत् मन्त्र है) यह दास (रामपाल दास) दान करता है। उसका प्रमाण आदरणीय धर्मदास साहेब जी की वाणी जो कबीर सागर तथा कबीर पंथी शब्दावली में तथा आदरणीय गरीबदास साहेब जी की वाणी में तथा आदरणीय दादू साहेब जी की वाणी में तथा आदरणीय घीसा दास साहेब की वाणी में तथा परमेश्वर कबीर साहेब जी की वाणी में प्रमाण है। परंतु वर्त मान के सर्व तथा कथित कबीर पंथी तथा उपरोक्त अन्य संतों के पंथी सतनाम से अपरीचित हैं तथा मनमाने नाम जाप दान कर रहे हैं। जो व्यर्थ हैं।