धर्मदास जी वंश परिचय

दामाखेड़ा वालों की मनघड़न्त कहानी है कि वंश गद्दी से ही कलयुग में मुक्ति सम्भव है तथा प्रत्येक गद्दी वाला महंत 25 वर्ष 20 दिन तक गद्दी पर रहता है।

वर्तमान कबीर सागर का संशोधन कर्ता भी दामा खेड़ा वालों का अनुयायी है। कबीर सागर में कबीर चरित्र बोध (बोध सागर) में लेखक ने लिखा है कि धर्मदास जी के बयालीस वंश का नियम है कि प्रत्येक वंश पच्चीस वर्ष बीस दिन तक गद्दी पर बैठा करे तथा स्वःइच्छा से शरीर छोड़े। इस से अधिक तथा कम समय कोई गद्दी पर न रहे। यह भी लिखा है कि वर्तमान में यही क्रिया चल रही है।

‘‘धर्मदास जीवन दर्शन एवं वंश परिचय’’ पुस्तक पृष्ठ नं. 32 से 49 तक विवरण दिया है:-

  1. पहला चुरामणी जी सम्वत् 1570 से 1630 तक 60 वर्ष कुदुरमाल नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
  2. दूसरा सुदर्शन नाम जी सम्वत् 1630 से 1690 तक 60 वर्ष  रतनपुर नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
  3. तीसरा कुलपत नाम जी सम्वत् 1690 से 1750 तक 60 वर्ष कुदुरमाल नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
  4. चैथा प्रमोद गुरू बाला पीर जी सम्वत् 1750 से 1804 तक 54 वर्ष मंढला नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
  5. पाँचवां केवल नाम जी सम्वत् 1804 से 1824 तक 20 वर्ष धमधा गद्दी पर रहे।
  6. छठवां अमोल नाम जी सम्वत् 1824 से 1846 तक 22 वर्ष मंडला नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
  7. सातवां सूरत सनेही जी सम्वत् 1846 से 1871 तक 25 वर्ष सिंघाड़ी नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
  8. आठवां 1872 से 1890 तक 18 वर्ष कवर्धा नामक स्थान की गद्दी पर रहा।
  9. नौवां 1890 से 1912 तक 22 वर्ष कवर्धा नामक स्थान की गद्दी पर रहा।
  10. दसवां 1912 से 1939 तक 27 वर्ष  कवर्धा नामक स्थान की गद्दी पर रहा।
  11. ग्यारहवें को गद्दी ही नहीं हुई। क्योंकि दो वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई।
  12. बारहवां उग्र नाम साहब जी सम्वत् 1953 में गद्दी पर बैठा तथा सम्वत् 1971 में मृत्यु हुई, 18 वर्ष तक कवर्धा  स्थान को त्याग कर दामा खेड़ा में स्वयं गद्दी बना कर रहा तथा सम्वत् 1939 से 1953 तक 14 वर्ष तक दामाखेड़ा नामक स्थान की गद्दी के पंथ वंश बिना पंथ रहा।
  13. तेरहवां वंश दयानाम साहेब सम्वत् 1971 से 1984 तक 13 वर्ष दामाखेड़ा नामक स्थान की गद्दी पर रहा।

उपरोक्त विवरण से सिद्ध है कि दामाखेड़ा वालों की मनघड़न्त कहानी है कि वंश गद्दी से ही कलयुग में मुक्ति सम्भव है तथा प्रत्येक गद्दी वाला महंत 25 वर्ष 20 दिन तक गद्दी पर रहता है। फिर दूसरे को उत्तराधिकारी बना कर शरीर त्याग जाता है। न अधिक समय, न कम समय अपितु पूर 25 वर्ष 20 दिन ही रहता है, यह गलत सिद्ध हुआ। क्यूंकी उपरोक्त विवरण में किसी भी गद्दी वाले ने 25 वर्ष 20 दिन का समय नहीं रखा कोई  60 वर्ष कोई 54, 22, 27 या पूरे 25 या 18 वर्ष समय गद्दी पर रहे हैं।

Last update: March 28th, 2020